जिसकी तुझे तलाश वोह मंजिल नहीं हूँ मैं
बेशक तेरे सफीने का साहिल नहीं हूँ मैं
तू लाख बेखबर हो जो मुझसे तोः क्या हुआ
इक लम्हा तेरी जात से गाफिल नहीं हूँ मैं
फिर आज हो गई है सज़ा बेक़सूर को
कहता ही रह गया वोह के कातिल नहीं हूँ मैं
सब से नही दिल के ज़ख्म छुपाऊं तो क्या करुँ
एलान-ए-रंज-ए-इश्क का कायल नहीं हूँ मैं
जालिम समझ सका नही मेरे खामोशी का राज़
साबिर हूँ अहल-ए ज़र्फ़ हूँ बुजदिल नहीं हूँ मैं
मैं खुश के मेरी जीस्त का हासिल है सिर्फ़ तू
तू खुश के तेरी जीस्त का हासिल नहीं हूँ मैं
मेरी दुआ में क्यूँ नहीं मा’बूद अब असर
के आज तेरे रहम के काबिल नहीं हूँ मैं
तनकीद-ए-अहल-ए-इल्म पे आंसू बहाऊं मैं
ऐ “दिल” अब ऐसा भी जाहिल नहीं हूँ मैं