nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Friday, May 29, 2009
daag dehlvi ki shayyiri
रस्म-ए-उल्फत सिखा गया कोई दिल की दुनिया पे छा गया कोई ता_क़यामत किसी तरह न बुझे आग ऐसी लगा गया कोई दिल की दुनिया उजड़ी सी क्यूँ है क्या यहाँ से चला गया कोई वक्त-ऐ-रुखसत गले लगा कर 'दाग' हस्ते हस्ते रुला गया कोई
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