Friday, June 5, 2009

daag dehlvi ki shayyiri

गम से कहीं नजात मिले चैन पायें हम
दिल खून मैं नहाए तो गंगा नहाए हम
जानत मैं जाए हम की जहन्नुम मैं जाएँ हम
मिल जाए तू कहीं ण कहीं तुझको पायें हम
मुमकिन है ये की वादे पे अपने वो आ भी जाए
मुश्किल ये है की आप मैं उस वक्त आयें हम
नाराज हो खुदा तो करें बंदगी से खुश
माशूक रूठ जाए तो क्योंकर मनाएँ हम
सर दोस्तों के काटकर रखे हैं सामने
गैरों से पूछते हैं क़सम किसकी खाएं हम
सौंपा तुम्हें खुदा को चले हम तो नामुराद
कुछ पड़ के बखाशाना जो कभी याद आयें हम
ये जान तुम ण लोगे अगर आप जायेगी
इस बेवफा की खैर कहाँ तक मनाएँ हम
हमसाये जागते रहे नालों से रात भर
सोये हुए नसीब को क्यूंकर जगाये हम
तू भूलने की चीज नहीं खूब याद रख
ए 'दाग' किस तरह तुझे दिल से भुलाएँ हम

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