हालत-ऐ-हाल के सबब, हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया, शौक़ की जिंदगी गई
एक ही हादिसा तो है और वो ये के आज तक
बात नहीं कही गई, बात नहीं सुनी गई
बाद भी तेरे जाँ-ए-जा दिल में रहा अजाब समान
याद रही तेरी यहाँ, फिर तेरी याद भी गई
उसके बदन को दी नमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक काबा भी सी गई
उसकी उम्मीद-ए-नाज़ का हमसे ये मान था के आप
उमर गुज़र दीजिये, उमर गुजार दी गई
उसके विसाल के लिए, अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल के थी ख़राब, और ख़राब की गई
तेरा फिराक जाँ-ए-जा ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक में खूब शराब पी गई
उसकी गली से उठ के मैं आन पड़ा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गई
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