Saturday, June 6, 2009

qateel shifai ki shayyiri

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते है
हम चिरागों की तरह, शाम से जल जाते हैं
शमा जिस आग से जलती है, नुमिश के लिए
हम उसी आग में, गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है तेरा नाम, मेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग, मेरे नाम से जल जाते हैं
तुझसे मिलने पे मुझे, क्या कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे, पैगाम से जल जाते हैं

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