आँखे तक रही है सूनी राहों को, इन्तजार किसका है
किससे रखे हम वफ़ा की उम्मीद, ऐतबार किसका है
हम जानते है की मिलता है इश्क में सिर्फ जख्म
फिर भी अपने दिल पर अपना अधिकार किसका है
खींच लाये जो मुझे मौत से ज़िन्दगी की तरफ
आज के दौर में इतना पावन प्यार किसका है
बसा ले जो तुझे अपने तन मन में ऐ "ब्रह्मा"
इस कदर दिल आज इतना बेकरार किसका है
तुम दवा दो या अब दे दो ज़हर ही मुझको
ऐसी हालत में मरने से आज इनकार किसका है
No comments:
Post a Comment