दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग
जीवन-जीवन हमने जग में खेल यही होता देखा
धीरे-धीरे जीती दुनिया धीरे धीरे हारे लोग
वक़त सिंघासन पर बैठा है अपने राग सुनाता है
संगत देने को पाते हैं सांसों के इकतारे लोग
नेकी इक दिन काम आती है हमको कया समझाते हो
हमने बेबस मरते देखे कैसे प्यारे-प्यारे लोग
जिनकी नगरी है वो जाने हम ठहरे बंजारे लोग
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