nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Sunday, December 21, 2008
zauk ki shayyiri
क़स्द[इरादा] जब तेरी ज़्यारत[दर्शन] का कभी करते हैं चश्म पुर आब से आईने वजू[मुंह धोना] करते हैं करते इज़हार हैं दर पर्दा[पीठ पीछे]अदावत अपनी क्यूँ मेरे आगे जो तारीफ़ अदू करते हैं दिल का यें हाल है फट जाएहै सौ जा[जगह] से और अगर इक जाए से हम इसको रफ़ू करते हैं तोडें इक नाला से इस कासपे गर्दूं को मगर नोश[पीना] हम इसमें कभी दिल का लहू करते हैं कड़े-दिल-जू[प्रेमिका कि ऊंचाई] को तुम्हारे, नहीं देखा शायद सर कशी[विद्रोह] इतनी जो सरवे लबे जू[नदी किनारे के सरो के पेड़] करते हैं
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