nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Tuesday, March 31, 2009
abdulla kamal ki shayyiri
कोई उस शहर में कब था उसका उसे यह ज़ोअम[pride] कि रब था उसका उसकी रग रग में उतरती रही आग उसके अन्दर ही गज़ब था उसका वही सिलसिला-ए-तार-ए-नफस वही जीने का सबब था उसका सिद्क़[truth)]-जादा था वोह शाहज़ादा कमाल बस यही नाम-ओ-नसब था उसका
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