nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Tuesday, March 17, 2009
"daag" ki shayyiri
आँखें खुली हुई हैं पस-ए-मर्ग[मरने के बाद] इसलिए जाने कोई कि तालिब-ए-दीदार मर गया किस बेकसी[असहाय]से 'दाग' ने अफ़सोस जान दी पढ़ कर तेरे फिराक[जुदाई]के अशआर[कवितायें]मर गया
No comments:
Post a Comment