मोहब्बत का यही तोहफा बोहत है
मेरे पहलू में एक शोला बोहत है
अमर कर लूँ अगर में आज इसको
सदी के बीच एक लम्हा बोहत है
समंदर, मौज-ए-दरया सब तुम्हारे
मुझे शबनम का एक कतरा बोहत है
हजारों कारवाँ हैं रास्ते में
जो मंजिल पर है वोह तनहा बोहत है
हवस रखता नहीं में माल-ओ-जार कि
मुझे एक दर्द का सिक्का बोहत है
किताब-ए-इश्क़ जो पढ़ने लगे हैं
तो हर पहलू से दिल तड़पा बोहत है
समझ पाए नहीं हम उस की बातें
वोह है नादाँ मगर गहरा बोहत है
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