nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Monday, March 23, 2009
parvin shakir ki shayyiri
दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना मुस्कुराते हुए रुखसत करना अच्छी आँखें जो मिली हैं उसको कुछ तो लाजिम हुआ वहशत करना जुर्म किसका था, सज़ा किसको मिली अब किसी से ना मोहब्बत करना घर का दरवाज़ा खुला रखा है वक़्त मिल जाये तो ज़ह्मत करना
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