nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Tuesday, April 28, 2009
unknown
मेरे चेहरे से इश्क का गुमाँ होता क्यूँ है जब आग ही नहीं तो धुआं होता होता क्यूँ है ... चटकता है कहीं जब आइना ए-दिल किसी का हर बार मुझी पे ही सुब्हा होता क्यूँ है ... दिल न लगाने की यूँ तो कसम उठा रखी है उसकी यादो में फिर भी रतजगा होता क्यूँ है ...
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