nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Thursday, April 30, 2009
mirza mazhar jan-e-janaan ki shayyiri
न तू मिलने के अब क़ाबिल रहा है न मुझको वो दिमाग़-ओ-दिल रहा है यह दिल कब इश्क़ के क़ाबिल रहा है कहाँ उसको दिमाग़-ओ-दिल रहा है खुदा के वास्ते उसको ना टोको यही एक शहर में क़ातिल रहा है
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