Thursday, May 7, 2009

amir minaai ki shayyiri

चर्ख़ मुखालिफ, बख्त है वाजूं[उल्टा], कोई नही उम्मीद की सूरत
हाथ उठाये खाक़ दुआ को, बंद जो पायें बाबे असर हम

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