चलो इश्क नही, चाहत की आदत है
क्या करे के हमें दुसरे की आदत है
तू अपनी शीशागरी का न कर हुनर जाया
मैं आईना हूँ, मुझे टूटने की आदत है
विसाल में भी नही फासले सरब के हैं
के उसको नींद, मुझको रतजगे की आदत है
तेरा नसीब है ऐ दिल सदा की महरूम
न वो सखी है, न तुझे मांगने की आदत है
ये ख़ुद-अजियत कब तक 'फ़रज़'
तू भी उससे न कर याद, जिसे भूलने की आदत है
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