Saturday, May 30, 2009

unknown

अब तो उठ सकता नहीं आंखों से बार-ए-इंतज़ार
किस तरह काटे कोई लाइल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार
उनकी उल्फत का यकीन हो उनके आने की उम्मीद
हो ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इंतज़ार
उनके ख़त की आरजू है उनके आमद का ख्याल
किस कदर फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार

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