nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Saturday, May 30, 2009
unknown
अब तो उठ सकता नहीं आंखों से बार-ए-इंतज़ार किस तरह काटे कोई लाइल-ओ-नहार-ए-इंतज़ार उनकी उल्फत का यकीन हो उनके आने की उम्मीद हो ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इंतज़ार उनके ख़त की आरजू है उनके आमद का ख्याल किस कदर फैला हुआ है कारोबार-ए-इंतज़ार
No comments:
Post a Comment