Thursday, May 7, 2009

unknown

तुम ने तो कह दिया के मुहबत नहीं मिली
मुझको तो यें कहने की भी मोहलत नहीं मिली
नींदों के देश जाते कोई ख्वाब देखते
लेकिन घर में दिया जलाने की भी फुरसत नहीं मिली
तुझको तो खैर शहर के लोगों का खौफ था
और मुझको तो अपने घर से इजाज़त नहीं मिली
फिर इख्तिलाफ-ए-राये की सूरत निकल पड़ी
अपनी यहाँ किसी से भी आदत नहीं मिली
बेजार यूँ हुए के तेरे अहद में हमें
सब कुछ मिला सकून की दोलत नहीं मिली

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