परदे परदे में आफताब अच्छे नहीं
ऐसे अंदाज़-ए-हिजाब अच्छे नहीं
मय_कदे में हो गये चुप-चाप क्यूँ
आज कुछ मस्त-ए-शराब अच्छे नहीं
ऐ फलक कया है ज़माने की बिसात
दम-ब-दम के इंक़लाब अच्छे नहीं
बज्म-ए-वाइज़ बे_शराब अच्छे नहीं
ऐसे जलसे बे_शराब अच्छे नहीं
तौबा कर लें हम मय-ओ-माशूक से
बे-मज़ा हैं यें सवाब अच्छे नहीं
इक नजूमी 'दाग़' से कहता था आज
आप के दिन ऐ जनाब अच्छे नहीं
No comments:
Post a Comment