Saturday, May 30, 2009

fahad ki shayyiri

गली में दर्द के पुर्जे तलाश करती थी
मेरे खतूत के टुकड़े तलाश करती थी
भुलाये कौन आज़ीयत पसंदियाँ उसकी
खुशी के ढेर में सदमे तलाश करती थी
अज़ब हिज़र_परस्ती थी उसकी फितरत में
शजर के टूटे पत्ते तलाश करती थी
घुमा फिरा के जुदाई की बात करती थी
हमेशा हिज़र के हरबे तलाश करती थी
दुआ'एँ करती थी उजडे हुए मजारों पर
बड़े अजीब सहारे तलाश करती थी
मुझे तोह आज बताया है बादलों ने "फहद"
वो लौट आने के रस्ते तलाश करती थी

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