गली में दर्द के पुर्जे तलाश करती थी
मेरे खतूत के टुकड़े तलाश करती थी
भुलाये कौन आज़ीयत पसंदियाँ उसकी
खुशी के ढेर में सदमे तलाश करती थी
अज़ब हिज़र_परस्ती थी उसकी फितरत में
शजर के टूटे पत्ते तलाश करती थी
घुमा फिरा के जुदाई की बात करती थी
हमेशा हिज़र के हरबे तलाश करती थी
दुआ'एँ करती थी उजडे हुए मजारों पर
बड़े अजीब सहारे तलाश करती थी
मुझे तोह आज बताया है बादलों ने "फहद"
वो लौट आने के रस्ते तलाश करती थी
No comments:
Post a Comment