nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Friday, May 22, 2009
fazal taabish ki shayyiri
तमन्ना का सर यूं उतारा गया हर एक बीच रस्ते में मारा गया मैं किस किस की आवाज़ पर दौड़ता मुझे चौ-तरफ से पुकारा गया वहां ज़ख्म पर बात ही कब हुई फ़क़त आंसुओं को शुमारा गया हवस थी उसे मेरी हर चीज़ की मगर मुझसे सब कुछ न हारा गया
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