ये सन्नाटा बोहत महँगा पडेगा
उसे भी फूट कर रोना पडेगा
वही दो चार चेहरे अजनबी से
उन्हीं को फिर से दोहराना पडेगा
कोई घर से निकलता ही नहीं है
हवा को थक के सो जाना पडेगा
यहाँ सूरज भी काला पड़ गया है
कहीं से दिन भी मंगवाना पडेगा
वोः अच्छे थे जो पहले मर गए हैं
हमें कुछ और पछताना पडेगा
फज़ल ताबिश
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