हस्ती अपनी हुबाब की सी है
यह नुमाईश सराब की सी है
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है
बार बार उसके दर पे जाता हूं
हालत अब इज़्तिराब की सी है
मैं जो बोला कहा कि यह आवाज़!
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है
मीर उन नीम-बाज़ आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
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