Friday, May 29, 2009

nasir kazmi ki shayyiri

तन्हा इश्क के ख्वाब बुन
कभी हमारी बात भी सुन
थोड़ा ग़म भी उठा प्यारे
फूल चुने हैं खार भी चुन
सुख की नींदें सोने वाले
मरहूमी के राग भी सुन

किता

तन्हाई में तेरी याद
जैसे एक सुरीली धुन
जैसे चाँद की ठंडी लौ
जैसे किरणों की कुन मून
जैसे जल-परिओं का ताज
जैसे पायल की छुन छुन

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