Sunday, May 10, 2009

rashid ki shayyiri

मुझसे मेरा कया रिश्ता है हर इक रिश्ता भूल गया !
इतने आईने देखे हैं अपना चेहरा भूल गया !
अब तो ये भी याद नहीं है फर्क था कितना दोनों में !
उसकी बातें याद रहीं और उसका लहजा भूल गया !
प्यासी धरती के होंठो पर मेरा नाम नहीं तो कया !
मैं वो बादल का टुकडा हूँ जिसको दरिया भूल गया !
दुनीया वाले कुछ भी कहें 'राशिद' अपनी मज़बूरी है !
उसकी गली जब याद आई है, घर का रस्ता भूल गया !

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