क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल
पूछा जो मैंने उससे के है कौन खुश-नसीब
आंखों से मुस्कुरा के लगायी मेरी ग़ज़ल
एक-एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुआं-धुआं
उसने जो गुनगुना के सुने मेरी ग़ज़ल
हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं है
‘राही’ तेरी ज़ुबाँ पे न आई मेरी ग़ज़ल
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