Friday, May 29, 2009

shakeel badayuni ki shayyiri

ज़ौक़-ऐ-सितम जुनून की हदों से गुज़र गया
कम-ज़र्फ़ जिंदा रह गए, इन्सान मर गया
ग़म खाना-ऐ-जहाँ में किसे जुर्रत-ऐ-कयाम
मेरा ही हौसला था, दो दिन ठहर गया
है शिद्दत-ऐ-खुलूस एक जुर्म-ऐ-आशिकी
परवाना जल के शम्मा को बदनाम कर गया
बैठे हैं आज आईना-ऐ-जान ले के वो
अब जानिए के नज़्म-ऐ-दो आलम संवर गया
लिल्लाह ! आप मुझसे मुहब्बत न कीजिये
दो रोज़ ही में आपका चेहरा उतर गया
पहले तोह ज़िन्दगी की तमन्ना थी इश्क में
अब ढूँढ़ता हूँ मैं, मेरा कातिल किधर गया
रह कर तिलिस्म-ऐ-खाना-ऐ-हस्ती में ऐ 'शकील'
तोह मैं ख़ुद अपने ही साए से डर गया

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