nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Saturday, May 30, 2009
unknown
बोहत ही मान है तुम पर सुनो पास-ऐ-वफ़ा रखना सभी से तुम मिलो लेकिन ज़रा सा फासला रखना बिछड़ना भी तोह पड़ता है ज़रा सा हौसला रखना वो सारे वसल के लम्हे तुम आँखों में सजा रखना अभी इमकान बाकी है अभी लब पे दुआ रखना बोहत नायाब हैं देखो हमें सब से जुदा रखना
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