Saturday, May 30, 2009

unknown

तुने ये मशवरा सुना है क्या ?
जिंदगी इश्क के सिवा है क्या !
काट ली सब सजाएं अब तोह बता
ऐ सितमगर ! मेरा गुनाह है क्या ?
आह महफिल में न निकलने दी
छुप के रोना भी कुछ गुनाह है क्या ?
उमर भर न मिला है मुझको सुकून
मौत ही आखिरी पनाह है क्या ?
ऐ मेरे जुर्म गिआने वाले
तेरे घर कोई आईना है क्या ?
चाँद इतना उदास धुंधला तू
मुझसे ज़्यादा, तन्हा है क्या ?
अजनबी से वोह आज बैठे हैं
क़त्ल का यह ही दिन चुना है क्या ?

No comments:

Post a Comment

wel come