Friday, May 29, 2009

unknown

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभालते क्यूँ हैं ?
इतने डरते हैं तोह फिर घर से निकलते क्यूँ हैं ?
मैं न जुगनूं न दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं ?
नींद से मेरा तागाल्लुफ़ ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ आ के मेरे छत पे टहलते क्यूँ हैं ?
मोड़ होता है जवानी का सँभालने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं ?
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभालते क्यूँ हैं ?
इतने डरते हैं तोह फिर घर से निकलते क्यूँ हैं ?

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