nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Saturday, May 30, 2009
unknown
मेरे पाऊँ मैं कभी हालत की ज़ंजीर न हो मेरे ख्वाबों की भयानक कहीं ताबीर न हो है कुर्बतों का ये मौसम पर ऐतबार नही तुझसे मिल कर ही बिछड़ना मेरी तकदीर न हो मांगी हैं दुआ'एँ के वोह सदा साथ रहे ये और बात है मेरी दुआ मैं तासीर न हो
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