नया एक रिश्ता क्यों पैदा करे, हमें बिछड़ना है तो झगडा क्यों करे
हम खामोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी कोई हंगामा बरपा क्यों करे
हम यह काफ़ी है के हम दुश्मन नही है वफादारी का दावा क्यों करे
हम वफ़ा, इखलास, कुर्बानी, मुहबत अब इन लफ्जों का पीछा क्यों करे
हम सुना दे अस्मत-ऐ-मरयम का किस्सा ? अब इस बाब को वा क्यों करे
हम जुलेखा से अजीजान बात यह है भला घाटे का सौदा क्यों करे
हम हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करे
हम क्या था अहद जब लम्हों में हमने तो सारी उमर ईफा क्यों करे
हम उठा कर क्यों न फेंके सारी चीजे फकत कमरों में थाला क्यों करे
हम जो एक नसल फ़र-ओ-माया को पुहंचे वोह सरमाया एक खट्टा क्यों करे
हम नही दुनिया को जब परवा हमारी तो फिर दुनिया की परवा क्यों करे
हम बरहराना है सर-ए-बाज़ार तो क्या भला अंधों से परदा क्यों करे
हम है बाशिंदे इस ही बस्ती के हम भी सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करे
हम चबा कें क्यों न ख़ुद ही अपना ढांचा तुम्हे रातिब मुहईया क्यों करे
हम पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करे
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