Saturday, May 30, 2009

unknown

ये इश्क दीवाना होता है, तुम रोग लगाये फिरते हो
ये लोग तोह सब बेगाने हैं, तुम साथ निभाये फिरते हो
ये जल थल सी अब रहने दो, आंखों से पानी बहने दो
ये रूप सुहाना करते हैं, तुम अश्क छुपाये फिरते हो
सावन का बरसेगा मौसम तोह सेहरा फूल खिलाएंगे
ये सोच के दिल बहलाना है, तुम होश उडाये फिरते हो
किस ग़म में डूबी ये आँखें, अब सुर्खी मायल रहती हैं ?
इन् पलकों पे ये अश्क नही, तुम खून सजाये फिरते हो
ये लौट के आएगा मौसम, गुलशन में खिलेंगी फिर कलियाँ
ये रूत तोह आनी जानी है, तुम सोग मनाये फिरते हो....!

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