Saturday, May 30, 2009

unknown

मैं जो महका तोह मेरी शाख जला दी उसने
सब्ज़ मौषम में मुझे ज़र्द हवा दी उसने
पहले इक लम्हे की ज़ंजीर से बंधा मुझको
और फिर वक्त की रफ़्तार बढ़ा दी उसने
जनता था के मुझे मौत सकून बखशेगी
वो सितमगर था सो जीने की दुआ दी उसने
उससके होने से थी साँसें मेरी दुगनी शायद
वो जो बिछडा तोह मेरी उमर घटा दी उसने

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