डर है कोई वुजूद के अन्दर खुला हुआ
ये राज़ वो है जो नहीं मुझ पर खुला हुआ
ऊपर घिरी हुई किसी चुप की घटाएं सी
नीचे किसी सदा का समंदर खुला हुआ
आ तू भी देख ताब-ऐ-तमाशा तुझे भी थी
बंदर बंधा हुआ है, मचंदर खुला हुआ
थक कर गिरी -सराब ऐ-सफर-ऐ-आरजू 'ज़फर'
हर सुर्ख रेग मौज थी बिस्तर खुला हुआ
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