बारे-ए-नाम सही कोई मेहरबान तो है
हमारे सर पे भी होने को आसमान तो है
ये और बात की वो अब यहाँ नहीं रहता
मगर ये उस का बसाया हुआ मकान तो है
अलावा इसके न कुछ और परदा रख मुझसे
फासिल-ए-जिस्म मेरे तेरे दरमियान तो है
बिछड़ के जिंदा नहीं रह सकेंगे हम दोनों
मुझे ये वहम तो है उनको ये गुमान तो है
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