nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Thursday, June 4, 2009
bahadur shah zafar ki shayyiri
थे कल जो अपने घर में वो मेहमान कहाँ हैं जो खो गए हैं या रब वो औसान कहाँ हैं आंखों में रोते रोते नम भी नहीं अब तो थे मौजज़न जो पहले वो तुफ्फान कहाँ हैं कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं पहले जो ऐ 'ज़फर' थे वो इंसान कहाँ हैं
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