Thursday, June 4, 2009

bahadur shah zafar ki shayyiri

लगता नही है दिल मेरा उजडे दयार में
किस की बनी है आलम-ए-न_पायेदार में

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ऐ-दागदार में

उमर-ए-दराज़ मांग के लाये थे चार दिन
दो आरजू में कट गए दो इंतज़ार में

कितना है बद नसीब 'ज़फर' के दफन के लिए
दो गज ज़मीं भी न मिल सकी कू-ऐ-यार में

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