तेरे क़दमों पे सर होगा कजा सर पे खड़ी होगी
फिर उस सजदे का क्या कहना अनोखी बंदगी होगी
नसीम-ए-सुबह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आखरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी
दिखा दूंगा सर-ए-महफिल बता दूंगा सर-ए-महशर
वो मेरे दिल में होंगे और दुनिया देखती होगी
मज़ा आ जाएगा महशर में फिर सुनने सुनाने का
ज़ुबाँ होगी वहाँ मेरी कहानी आप की होगी
तुम्हें "दानिश" आ महफिल में जो देखा हो तो मुजरिम
नज़र आख़िर नज़र हैं बे_इरादा उठ गई होगी
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