कभी वो मेरे सर पे आसमा नही होने देता
वो जालिम है किसी को मेहरबा नही होने देता
कुछ इस अंदाज़ से करता है वो अदाकारी
वो दिल का हाल चेहरे से अयाँ नही होने देता
वो अपने जुर्म को मासूमियत का नाम देता है
कभी अखबार की वो सुर्खियाँ नही होने देता
वो मेरा हो न हो पर दुसरे का भी नही होगा
ज़माने को मगर इस का गुमा नही होने देता
ऐ 'आज़म' इस खुदा-ए-पाक को सजदा करो न क्यूँ
किसी के भी दुआ को रायगाँ नही होने देता
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