Thursday, June 4, 2009

dr.imaam azam ki shayyiri

कभी वो मेरे सर पे आसमा नही होने देता
वो जालिम है किसी को मेहरबा नही होने देता
कुछ इस अंदाज़ से करता है वो अदाकारी
वो दिल का हाल चेहरे से अयाँ नही होने देता
वो अपने जुर्म को मासूमियत का नाम देता है
कभी अखबार की वो सुर्खियाँ नही होने देता
वो मेरा हो न हो पर दुसरे का भी नही होगा
ज़माने को मगर इस का गुमा नही होने देता
'आज़म' इस खुदा--पाक को सजदा करो क्यूँ
किसी के भी दुआ को रायगाँ नही होने देता

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