सुना है लोग उसे आंख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
यह बात है तो चलो बात करके देखते हैं
सुना है रात को तितलियाँ सताती है
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएं क़तर के देखते हैं
रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं
किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखें
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं
कहानियाँ ही सही, सब मुबाल्गे ही सही
अगर वो ख्वाब है, ताबीर कर के देखते हैं
जुदाईयाँ तो मुक़दर है फिर भी जान-ए-सफर
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं
तू सामने है तो फिर क्यूँ यकीन नहीं आता
यह बार बार जो आंखों को मल के देखते हैं
यह कौन लोग हैं मोजूद तेरी महफिल में
जो लालचों से तुझे मुझको जल के देखते हैं
न तुझको मात हुई है न मुझको मात हुई
सो अब के दोनों ही चालें बदल के देखते हैं
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