Thursday, June 4, 2009

ghalib ki shayyiri

दिल ही तो है ना संग-ओ-खिस्त
दर्द से भर ना आए क्यूँ
रोयेंगे हम हज़ार बार
कोई हमें सताए क्यूँ….

दैर नही, हरम नही
दर नही, आस्ताँ नही
बैठें हैं राह-गुज़र पे हम
गैर हमें उठाये क्यूँ….

क़ैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-गम
असल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी,
ग़म से निजात पाये क्यूँ…

हाँ वोह नही खुदा परस्त
जाओ वोह बेवफ्फा सही
जिसको हो दीन-ओ-दिल अज़ीज़
उस्सकी गली में जायें क्यूँ…

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