Friday, June 5, 2009

hafeez merthi ki shayyiri

अजीब लोग हैं क्या खूब मुंसिफी की है
हमारे क़त्ल को कह्ते हैं ख़ुद-कुशी की है
ये बांकपन था हमारा के ज़ुल्म पर हमने
बजाये नाला-ओ-फरियाद शेरे की है
ज़रा सा पाँव भिगोये थे जा के दरिया में
गुरूर ये है के हमने शानावारयाई की है
इसी लहू में तुम्हारा सफीना डूबेगा
ये क़त्ल-ए-आम नहीं, तुमने ख़ुदकुशी की है
हमारी कद्र करो चौदवीं के चाँद है हम
ख़ुद अपने दाग दिखने को रौशनाई की है
उदासियों को 'हाफीज़' आप अपने घर रखें
के अंजुमन को जरूरत शाकुफ्तागाई की है

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