Saturday, June 6, 2009

hussain irfan irfan ki shayyiri

हर आईना-ए-हक में मुमकिन है अक्स-ए-वाजिब
जिंदा सुबूत-ए-हक है फ़क़त एक जात में
बरसे है जिस ज़मीं पे गुलिस्तान बनाएदे
वो बात है इस क़तर-ए-आब-ए-हयात में
आलम फिजा में लू का ये तैर हैं जान-बा-लब
पानी मिसाल-ऐ-आग है नेहर-ऐ-फुरात में
प्यासे हैं ऐसी धूप में अत्फाल-ऐ-बनू-हाशिम
आब-ऐ-खुनुं रवां है किसी की जिरात में

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