Thursday, June 4, 2009

mohsin ki shayyiri

मैंने इस तौर से चाहा तुझे अक्सर जानाँ
जैसे महताब को बे-अंत समंदर चाहे
जैसे सूरज की किरण सीप के दिल में उतरे
जैसे खुशबू को हवा रंग से हट कर चाहे

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wel come