कतल छुपते थे कभी संग की दीवार के बीच
अब तो खुलने लगे मकतल भरे बाज़ार के बीच
अपनी पोशाक के छीन जाने पे अफ़सोस न कर
सर सलामत नही रहते यहाँ दस्तर के बीच
सुर्खियाँ अमन की तलकीन में मसरूफ रहें
हरूफ बारूद उगलते रहे अख़बार के बीच
काश इस खुवाब की ताबीर की मोहलत न मिले
शोले उगते नज़र आए मुझे गुलज़ार के बीच
ढलते सूरज की तमाज़त ने बिखर कर देखा
सर कशीदा मेरा साया साफ-ए-अश्जार के बीच
रिजक, मलबोस, मकाँ, साँस, मर्ज़, क़र्ज़, दवा
मुन्किसम हो गया इंसान इन्ही अफ़कार के बीच
देखे जाते न थे आंसू मेरे जिस से 'मोहसिन'
आज हँसते हुए देखा उससे अग्यार के बीच
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