nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Saturday, June 6, 2009
nida fazli ki shayyiri
जाने वालों से रबता रखना दोस्तों रस्म-ए-फातिहा रखना घर कि तामीर चाहे जैसी हो इस में रोने कि कुछ जगह रखना मस्जिदें हैं नमाजियों के लिये अपने घर में कहीं खुदा रखना जिस्म में फैलने लगा है शहर अपनी तन्हाइयां बचा रखना उमर करने को है पचास को पार कौन है किस जगह पता रखना
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