nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Saturday, June 6, 2009
nida fazli ki shayyiri
कभी किसी को मुकमल जहाँ नही मिलता कहीं ज़मी तो कहीं आसमा नही मिलता तेरे जहाँ में ऐसा नही की प्यार न हो जहा उम्मीद हो इसकी वहां नही मिलता बुझा सका है भला कौन वक्त के शोले यह ऐसी आग है की जिस में धुआं नही मिलता
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