Friday, June 5, 2009

sahir ludhanwi ki shayyiri

मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो
कठिन सही तेरी मंजिल, मगर उदास न हो

कदम कदम पे चट्टानें खडी रहें, लेकिन
जो चल निकलते हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते
हवाएं कितना भी टकराएँ आंधियां बनाकर,
मगर घटाओं के परछम कभी नहीं झुकाते
मेरे नदीम मेरे हमसफर .....

हर एक तलाश के रास्ते मैं मुश्किलें हैं, मगर
हर एक तलाश मुरादों के रंग लाती है
हजारों चाँद सितारों का खून होता है
तब एक सुबह फिजाओं पे मुस्कुराती है
मेरे नदीम मेरे हमसफर ....

जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते
वो जिंदगी मैं नया रंग ला नहीं सकते
जो रास्ते के अंधेरों से हार जाते हैं
वो मंजिलों के उजालों को पा नहीं सकते

मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो
कठिन सही तेरी मंजिल, मगर उदास न हो

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