nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Thursday, June 4, 2009
samina raja ki shayyiri
तन्हा सर-ए-अंजुमन खड़ी थी मैं अपने विसाल से बड़ी थी इक उमर तलक सफर किया था मंजिल पे पुहंच के गिर पड़ी थी तालिब कोई मेरी नफ्फी का था और शर्त ये मौत से करी थी वो एक हवा-ए-ताज़ा में था मैं, ख्वाब-ए-क़दीम में गिरी थी वो ख़ुद को खुदा समझ रहा था मैं अपने हुज़ूर में खड़ी थी
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